श्री राम चंद्र कृपाल
श्री रामचंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणम पुस्तक जगदीश भाई आकाश आकाश गीता पृष्ठ 62
कृष्ण कहते हैं ! हे पार्थ ! माया के अवरोध से पूर्ण मुक्त होने के लिये भावनात्मक रूप से माया और ब्रह्म के वास्तविक स्वरूप को समझते हुए ,अपना ध्यान पनिहारिन के माथे की मटकी की तरह मुझ विराट पर केंद्रित कर निरंतर जप , तप का आश्रय ले, एकांत सेवन करें। ।
कृष्ण कहते हैं ! हे पार्थ ! ज्ञाप सुनने सुनाने की ही बात नहीं ज्ञान जब तक अंतर्मन को ह्रदयग॑म नहीं होता तब तक ज्ञान निरर्थक है । मुंह , मस्तिष्क और मन का और मन जब तक उसको ह्रदय से संस्कारित नहीं करता ज्ञान निरर्थक है।
कृष्ण कहते हैं ! हे पार्थ ! मेरी कही हुई बातों को ध्यान से सुना या नहीं, सुना है तो ह्रदयग॑म हुआ या नहीं ।
मात्र मेरे वचनों को , मेरी गीता का पाठ जो नित्य करता है अर्जुन सब निरर्थक है । पठन ,पाठन ,श्रवण के रूप में यदि यह सब करके ह्रदयग॑म नहीं करता ।
हे पार्थ ! क्या तुम्हारी बुद्धि स्थिर हुई है या नहीं ॽ तुम्हारा अज्ञान जनित मोह नष्ट हुआ या नहीं ?
सबसे गहरी बात ध्यान से सुन ! क्योंकि तुम मुझे अतिशय प्रिय हो ! राम युग में मेरे स्वयं के हाथ में धनुष था परंतु इस महाभारत में मेरा धनुष अर्जुन है, जीव की हजारों गलतियां में नकार देता हूं यदि वह मेरी शरण हो जाता है ।
हे पार्थ ! तुम भी व धर्मराज युधिष्ठिर सभी धर्म के भय से धर्म में रहे ।
कृष्ण कहते हैं ! हे पार्थ ! तुम योद्धा हो,महारथी हो ! संसार के महान धनुर्धरों में से एक हो! धर्म भिरू क्यों बनते हो ? हे पार्थ धर्मवीर बनो ! धर्मभीरु नहीं ! धर्म से डर कर नहीं !
परंतु कुछ भी हो तुम कहीं ना कहीं किसी न किसी रूप में धर्म को ,सत्य को स्वीकार करते हो ! यह एक बहुत अच्छी धर्म मय बात है ।
कृष्ण कहते हैं ! हे पार्थ ! जब जीव संपूर्ण सौंदर्य, त्रैलोक्य के सौंदर्य की ओर जब गोपी भाव , मधुराती , मधुरस ,गोपी सभी भाव,यही भाव गोपियों में, योगियों में जब रमण करते हैं । निरंतर जय श्री कृष्णा ! जगदीश आकाश !
महारास ! जिव के ह्रदय में साक्षात ब्रह्म का, जब साक्षात रमण होता है तब उस ह्रदय से हरा प्रकाश , सुनहरा प्रकाश कोटि कोटि , करोड़ों किरणों के अनोखे प्रकाश का सरोवर प्रकाश मय संपूर्ण ह्रदय में आलोकित होता है । तब गोपी भाग का प्रादुर्भाव होता है ।
कृष्ण कहते हैं ! हे अर्जुन ! हे पार्थ ! जीव के हृदय से जब भक्ति का सूर्य उदित होता है । जब भक्त मुझे अपने ह्रदय में स्थान देता है तो द्वापर के अंतिम चरण व त्वरित अर्थात तेज चलने वाले युग कलयुग में उसकी रक्षा मैं कैसे नहीं करूंगा ? उसकी रक्षा मैं करूंगा ! उसके चेतन सत्ता की मैं रक्षा करूंगा क्योंकि वह मेरा भक्त मुझे सर्वाधिक प्रिय होता है !यह मैं सत्य प्रतिज्ञा करता हूं !
जगदीश भाई आकाश नारायण सेवा संस्थान उदयपुर राज
भारत 90 575 99362
महायोगी किशन लाल जी देवीलाल जी मदन लाल जी सोहन देवी अग्रवाल परमार्थिक चैरिटेबल ट्रस्ट कोटा उदयपुर भीलवाड़ा राजस्थान रामघाट के पास ऋषिकेश भगवान दयाल जी मिश्रा शाखा अध्यक्ष परमार्थ निकेतन के बंदूक वाले मिश्रा जी प्रातः काल !
सदा भवानी दाहिनी सन्मुख राहत गणेश पंच देव रक्षा करें ब्रम्हा विष्णु महेश !
एक ही निवेदन बारंबार मात्र हमारे उंगली से अपने ग्रुपों के नाम और नंबर पर दबाने पर से कृष्ण की वाणी संपूर्ण सृष्टि में गुंजित होती है
प्रेषित होती है यही अनुग्रह अनुग्रह बारंबार अपने संपर्कों में परिवारों में नामों में आगे से आगे प्रेषित करें ! अनुग्रह जय श्री राधा कृष्णा , सीताराम , बजरंगबली , गणेश जी महाराज मां सरस्वती आपका हर दिन मंगलमय हो यही प्रातः काल परमात्मा से प्रार्थना कथा पहुंचती है जहां-जहां वहां हमारे भाव पर निश्चित फलीभूत होती है जो ? ज आकाश
निरंतर प्रेषित अपनों के ग्रुपों में और नामों में प्रातः काल 4:31 से निरंतर
आने वाले समय में कृष्ण आकाश गीता पेज नंबर 67 पर कुंडलिनी जागरण के द्वारा सशरीर वैकुंठ यात्रा के आनंद का वर्णन करते हैं जय श्री कृष्णा !
आँचल सोनी 'हिया'
05-Jan-2023 04:30 PM
Shandar
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Varsha_Upadhyay
03-Jan-2023 08:42 PM
बेहतरीन
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Muskan khan
31-Dec-2022 07:13 PM
Nice
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